साल 2014 के भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जापान और अमरीका के तीन वैज्ञानिकों को नीली एलईडी लाइट्स के आविष्कार के लिए मिला है.
प्रोफ़ेसर इसामु अकासाकी, हिरोशी अमानो और शुजी नाकामुरा ने 1990 की शुरुआत में पहली नीली एलईडी लाइट्स का आविष्कार किया था.
वर्तमान की लाल और हरी एलईडी लाइट्स के साथ नीली एलईडी लाइट्स के संयोग से कम ऊर्जा खपत वाले सफ़ेद लैंप का बनना संभव हुआ है.
भौतिकी का नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिकों को तकरीबन छह करोड़ 83 लाख रुपए मिलेंगे.
'अविश्वसनीय'
जापान में प्रोफ़ेसर नाकामुरा को जब यह ख़बर देने के लिए जगाया गया तो उन्होंने कहा, "यह अविश्वसनीय है."
नोबेल जूरी ने पुरस्कारों की घोषणा करते हुए एलईडी लाइट्स की उपयोगिता को सामने रखा.
कैलमर्स यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नॉलटी गुटेनबर्ग के प्रोफ़ेसर पेर डेलसिंग ने कहा, "दिलचस्प तथ्य यह है कि तमाम बड़ी कंपनियां एलईडी का आविष्कार करने की कोशिश कर रही थीं और उनको विफलता मिली."
उन्होंने नोबेल जीतने वाले वैज्ञानिकों के समर्पण पर ज़ोर देते हुए कहा, "लेकिन ये वैज्ञानिक लगे रहे और बार-बार कोशिशों से अंततः उनको इस आविष्कार में सफलता मिली."
सबसे बड़ी चुनौती
हालांकि लाल और हरी एलईडी लाइट्स पहले से मौजूद थीं. लेकिन वैज्ञानिकों और इंडस्ट्री के लोगों के लिए नीली एलईडी लाइट्स बनाना सबसे बड़ी चुनौती थी.
नीली एलईडी लाइट्स के आविष्कार के बिना तीनों रंगों की एलईडी लाइट्स को मिलाकर सफ़ेद एलईडी लाइट्स का बनना और टीवी स्क्रीन तथा कंप्यूटरों के लिए इसका इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं होता.
एलईडी लैंप में दुनियाभर के डेढ़ अरब लोगों तक रोशनी पहुंचाने की क्षमता है, जहां बिजली नहीं पहुंची है वहां स्थानीय स्तर पर सौर ऊर्जा के माध्यम से एलईडी लाइट्स का उपयोग किया जा सकता है.